Monday, September 30, 2013

श्रृद्धांजलि : जब तुम थे अपनापन था

यूँ तो हर कोई तन्हा होता है, पर जब तुम थे अपनापन था। 
किसी के लिए भी कोई कब तक रोता है, पर जब बात चली, आँखों में गीलापन था। 

रह गए कितने काम अधूरे, कितनी आशाएं टूट गयीं,
एक तुम्हारे जाने से, जीवन में कितना सूनापन है। 

चले गए जिस राह प्रिय तुम,  जाना सबको उसी डगर,
पर इतनी जल्दी जाओगे सपने में भी अनुमान न था। 

चिरपरिचित मुस्कान तुम्हारी, सबका दुःख हर लेती थी 
पर उसको भी तेरी जरूरत, इसका हमको भान न था।

यूँ तो हर कोई तन्हा होता है, पर जब तुम थे अपनापन था। 
किसी के लिए भी कोई कब तक रोता है, पर जब बात चली, आँखों में गीलापन था।  

उपर्युक्त श्रृद्धांजलि हमारे विभाग के एक साथी लेक्चरर स्वर्गीय  डा. अंशुल कुमार राणा एवं विभागाध्यक्ष की धर्मपत्नी  स्वर्गीय श्रीमती श्वेता तिवारी के एक के बाद एक निधन के पश्चात लिखा गया।  यह श्रृद्धांजलि विभाग की स्मारिका वृद्धोत्थान २०१० की पृष्ठ संख्या ११ पर प्रकाशित हुयी, और नेशनल सी एम् इ इन जिरियाट्रिक साइकाइट्री -२०१० तथा वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य विभाग के पाचवें स्थापना दिवस के अवसर पर पढ़ा गया।   हम आज भी इन दोनों महानुभाओं को मिस करते हैं.………… 

2 comments:

  1. Is poori kavita me mahsoos hua kitna apnapan tha..............

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