Tuesday, September 17, 2013

सानिध्य एवं शुभकामनायें

सानिध्य 

तुम्हारे सानिध्य में युग बीते , तो एक पल जैसा लगेगा,
अग्नि की तपन भी मुझे, शीतल जल लगेगा ,
तुम्हारे स्नेहिल बंधन में बंधा ऐसा-
किसी अन्य की स्मृति भी, तुमसे छल लगेगा।

शुभकामनायें 

                                  (1)
ऊँचे विचार ऊँचा मस्तक, ऊँची सदैव इच्छा करना ,
कभी न आशा छोड़ निराशा की   वेदी पर पग रखना, 
कभी व्यथित हो इतना कि अश्रु लगें बहने अपार, 
भूल न जाना बीते पल ये याद हमारी तुम करना।  

                                  (2)
बनो अग्नि वो जो सोना को कुंदन कर देता है,
मधुर मिलन के प्रतिफल में जो नव जीवन देता है,
मेरी आशा कर प्रयास तुम कुण्डलिनी के अग्नि बनो ,
बनो अग्नि जो सभी अपावन पावन कर देता है।  

                                   (3)
निर्मल जल सी बहती रहो  तुम, बसंती पवन सी बिचरती रहो तुम, 
खुशबू मन की  कम न होने पाए कभी, महकती रहो चन्दन सी सदा तुम। 

                                   (4)
सतरंगी सपनों को आज उल्लास का रंग लगा दें , 
अपने के अपनों को भी आज मिलकर रंग लगा लें।
मन के कोनो में बैठे आज शिकवे गिले मिटा दें, 
होली के इस पावन पर्व पर जी भर गले लगा लें। 

6 comments:

  1. Kaviraj Rakesh Ji aap to AGNI hain, umeed karta hun sanidhya me kundan ki tarah hi.........
    Shubhkamnayen evam Sadhuvaad.

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    1. प्रिय अभिषेक जी,
      जर्रानवाजी का शुक्रिया। आपकी उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करूँगा। हार्दिक शुभकामनायें।

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  2. Replies
    1. धन्यवाद , शुभकामनायें।

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  3. Ati Sundar Abhivyakti!! Guru Kripa aur Guru ka sanidhya hii vardan hai!!

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