Friday, September 20, 2013

मैं तुम्हे सोच रहा हूँ

मैं तुम्हे सोच रहा हूँ -
हाँ सिर्फ तुम्हे 
तुम्हारी वीरान आँखे- 
रेगिस्तान में उठते धूल के बवंडर के समान। 
तुम्हारी मुस्कान-
सूर्योदय के पूर्व की अरुणाभा के समान।  
तुम्हारी हँसी -
सरोवर में खिलते पुष्प कमल के समान। 
तुम्हारे होठ-
सीपी के दोनों कपाट के समान जो 
लज्जा से रक्तिम कपोलों को बार-बार डसते हैं
और मैं उजड्ड 
उन्हें बन्धनहीन कर,
उनके डसने का आनंद लेता हुआ सोच रहा हूँ … 
हाँ मैं तुम्हे सोच रहा हूँ
सिर्फ तुम्हें….  

आओ आ जाओ मेरे पास 
मैं रेगिस्तान को बहार बना लूँगा, बवंडर को शीतल मंद बयार बना लूँगा, 
अरुणाभा को माथे का तिलक , और कमल को श्रृद्धा के हार बना लूँगा।

आओ आ जाओ मेरे पास 
नागिन को कर-पाश में बाँध लूँगा, मोतियों से भरी सीप चुरा लूँगा, 
कपोलों से लज्जा को लाली , और तुझे अपने आप से चुरा लूँगा।

आओ आ जाओ मेरे पास 
काँटों भरी राह को मखमली बना दूंगा, तेरे सपने अपनी पलकों पे सजा लूँगा,
अपने वचन से मुक्त कर दे मुझे कोई , मैं तुझे अपना हाँ अपना बना लूँगा। 
 

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