Friday, September 13, 2013

जाने क्यूँ : अपनी हस्तलिपि में

 
 

6 comments:

  1. ये सबकुछ इसलिए कि इस शरीर के साथ सबकुछ नया हो रहा है लेकिन इस संसार, माया और प्रकृति से परिचय और सम्बन्ध तो पुराना है, शाश्वत है, सनातन है|

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    1. प्रिय गोविन्द जी,
      आपकी सारगर्भित टिप्पणी ने कविता को नया उच्च आयाम दे दिया। ये अपनी ही खोज की भटकन है।

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  2. Priya Kavi Mahodaya,
    Yah ek aapraadhik kavita hai jo mujhe har baar pareshaan kar deti hai.Ye kavita ek baar me padh pana mere liye namumkin hai. Har baar koshish asfal ho jati hai. Har pankti mere avchetan ko vismrit ho chuki yadon me fir se panhucha deti hai. Khair bhavnao ko shabdik alkarn dene ke liye kya kahu uchit shabdon ka chayan kar ke bataunga.

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  3. प्रिय अभिषेक जी,
    वस्तुतः कविता के शब्द हर एक व्यक्ति की अपनी मनोदशा को व्यक्त करता है. जो जितना अर्थ लगा सके। चाहे मायाजाल में फसने की बात हो या उससे विमुख होने की। अभी तो आपको उसकी माया का आनंद लेना है जीभर के। शुभकामनायें।

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  4. कवि अच्छे नही होते
    उनके जीवन में बहुत स्याही होती है
    वे सफेद को स्याह करते हैं, हर वक्त
    कवि होने की जरूरी शर्त है यह
    फिर इसे वे बांट देते हैं विधा, शिल्प और शैली में.
    आप अपने को इससे अलग मत करिए
    यह बात आपके बारे में ही है.

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    1. प्रिय अभिषेक जी,
      सर्वप्रथम मुझे कवि समझने के लिए आपको धन्यवाद।
      इसका भान मुझे कब हुआ इसकी चर्चा फिर कभी अपने ब्लॉग राकेश उवाच : एक चिकित्सा मनोवैज्ञानिक की डायरी में करूंगा।
      आपने सत्य कहा कवि होने की जरूरी शर्त के बारे में। वे अपने जीवन के स्याह पन्नों को समाज में उजाला करने के लिए अपनी शैली में बाँट देते हैं। लोगों को श्याम (स्याह आपके शब्दों में) के बारे जानकारी होगी तभी तो, अपने जीवन के पन्ने को श्वेत करने के लिये सबक ले सकेंगे।

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