Saturday, September 14, 2013

अपनी सोच.......राकेश त्रिपाठी

फ़र्क

उनके  होने न होने में
कोई ख़ास फ़र्क नहीं है ,
पहले- 
उनके सानिध्य में दिन बीते, 
और  अब -
उनकी याद में।
 
 

प्रीति 

उमड़-घुमड़ कर प्रीति तुम्हारी
स्नेह सुधा बरसाती ,
तन- मन  पुलकित
रोम-रोम में सिहरन एक जगाती ,
श्वेत चंद्र जब नील गगन में
मंद -मंद मुस्काता ,
धवल चाँदनी, अमिय रश्मि बन
शीतल करती छाती। 

6 comments:

  1. बहुत अच्छा .... अच्छी कवितायें हैं!
    इस नई शुरुआत के लिए आप को बधाई और शुभकामनाएं!

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    1. धन्यवाद , हार्दिक शुभकामनायें।

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  2. त्रिपाठी जी,
    कहा गया है कि आपकी सोच का वही हिस्सा आपका व्यक्तित्व बनाता है जितना कार्य में परिणत हो जाता है| आपकी सोच को, "अपनी सोच" के रूप में (कार्य रूप में), समाज के सामने लाने के लिये धन्यवाद और बधाई|

    बधाई नए कार्य की शुरुआत के लिये और धन्यवाद आप के द्वारा इस माध्यम से आगे होने वाले समाज के हित के लिये|

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  3. प्रिय प्राची एवं गोविन्द जी ,

    प्रोत्साहन के लिए आप दोनों को हार्दिक धन्यवाद।

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  4. Prem ki utkrist unchaiyon ko sparsh karti prastuti, jahna prem aur bhakti ka antar nahi rah jata. Bahut achha pryash. Kuchh aur behtar ki ummeed me prateeskharat.

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  5. प्रिय अभिषेक जी,
    जर्रानवाजी का शुक्रिया। आपकी उम्मीद पर खरा उतरने की कोशिश करूँगा। धन्यवाद, हार्दिक शुभकामनायें।

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