Thursday, October 5, 2017

तू जो बोले तो


एक ख़ामोशी हमारे जी को देती है मलाल, 
वरना सब बातें पसन्द आईं तेरी तस्वीर की..."













Rakesh Tripathi ख़ामोशी का मलाल क्यूँ, बगल में दुनिया सिमट आयी है। 
बोलती आँखें न देखी तूने, जिनमें रूह उतर आयी है।
Abhishek Srivastav तुझे पाकर सिमट आयी है दुनिया मुझमें, 
रूह की जगह कभी जुबाँ से भी का लिया कर .
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Rakesh Tripathi
 Abhishek Srivastav वर्षों पहले लिखा था आज आपके उत्तर में लिख रहा हूँ :  

कंठ रुँधा, स्वाँसे शिथिल , चक्षु भी हैं लाचार ,
भावाभिव्यक्ति बस मौन है रिक्त शब्द भण्डार।

Abhishek Srivastav इतनी बेहतर भावभियक्ति का वर्णन, निरुत्तर हूँ मित्र।
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Rakesh Tripathi नही मित्र आप निरूत्तर क्यों ?अभी तक भाभी के समर्थन मे था , अब आपकी ओर सेे : September 26 at 8:50pm


तुझे पाकर सिमट आयी है दुनिया मुझमे,
तू जो बोले तो तेरे होने को महसूस करूँ।   
चलो माना कि बहुत बोलती हैं आँखें तेरी, 
तू जो बोले तो उस मिठास को महसूस करूँ। 
खो दिया है सुध बुध यूँ तुझे पाकर, 
कोई गर होश में लाये तो कुछ महसूस करूँ। 
लोग कहते हैं मौन भावना की  भाषा है, 
चेतना हो तो भावना को मैं महसूस करूँ। 
यूँ तो गुजर गए वर्ष कई संग तेरे, 
तू जो बोले फिर तेरी मांग का अभिषेक करूँ।
तुझे पाकर सिमट आयी है दुनिया मुझमे, 
तू जो बोले तो तेरे होने को महसूस करूँ  

नोट :  ऊपर दिए गये फोटो पर मेरे मित्र के साथ फेसबुक वार्तालाप के क्रम में ये लिखा गया।   इसमें दोनों का (पति-पत्नी ) नाम भी है. 
  

Friday, September 22, 2017

एक अभिव्यक्ति (बुज़ुर्ग की )

डिमेंशिया के रोगी की अभिव्यक्ति को अपने शब्दों में लिखने की कोशिश है जो वर्ष २०१२ में आयोजित Indian Psychaitric Society के central zone द्वारा आयोजित ३४वें वार्षिक संगोष्ठी के Souvenir  में प्रकाशित हुआ था. जिसका फोटो नीचे दिया गया।  
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Saturday, July 1, 2017

जन्मदिन मना लिया

बाज़ार  ने जज़्बातों को यूँ 'आम' बना दिया,
चलो इस तरह से 'आम' को भी 'ख़ास' बना दिया।

छुपा रखते थे जिन पलों को, एक खजाने की तरह,
बाज़ार ने ड्राइंग रूम का सामान बना दिया।

सब दे रहे बधाइयाँ यूँ जन्म दिवस की ,
सोशल साईट ने पैदाइश को आसान बना दिया।

पूँछो जरा उस कोख से कैसा लगा उसे,
बाज़ार ने उसे भी जब अपना बना लिया।

आशीष-कवच छोड़कर, घर के चिराग ने ,
केक पर  लगे चिराग (मोमबत्ती) को बुझा दिया। 
और इस तरह से अपना जन्मदिन  मना लिया। 

निजता रही सुरक्षित, इस बाज़ार की चाल से,
लोगों ने कई बार जन्मदिन मना लिया। 

लोगों की ख़ुशी खातिर, खुश हो लिए हम भी,
जब भी किसी ने चाहा जन्मदिन मना लिया। 

Friday, January 27, 2017

पहचान


कल तक तो आप, इतने जाने पहचाने न थे, 
पर आज इतने करीब हैं, कि हम खुद को भूल जाते हैं। 

कल तक तो आप 'आप' थे, और था मैं अजनबी,
आज 'तुम' हो गए हैं, और होश उड़ाये  जाते हैं।  

कल तक इन आँखों में ये खुमार न था ,
आज वो जाने क्यूँ , दिल की कसक बढ़ाये जाते हैं। 

वर्ष  १९९५ में लिखा था, नीचे देखें डायरी के पृष्ठ की फोटो  :