मुस्कराने की तलब टाला नहीं करते,
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।