मुस्कराने की तलब टाला नहीं करते,
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।
Very nice sir! Whenever I read your beautiful poems, your kind voice resonates in my ears and I feel so happy that I can't express in words
ReplyDeleteBest regards,
Devendra
Thank you for your kind words. Stay blessed.
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