मैं हूँ वही, तुम हो वही, तारीख भी वही है,
प्रिये ! उमड़ते ज़ेहन में, नये -नये जज़्बात।
तुम हो वहां, मैं हूँ यहाँ, फिर आ गयी अप्रैल बीस,
हो गयी ये तो बात पुरानी, हैं नये-नये अरमान।
पलक झपकते गुज़र गए, फेरे जितने साल,
प्रीति पुरानी हो गयी अपनी, हैं नये -नये मेहमान।
तुम हो वही मैं हूँ वही और घर भी तो वही है,
पर अपनी जिन्दगी में हैं, अब नये -नये सामान।
मैं हूँ वही, तुम हो वही और नाम भी वही हैं,
पर अपनी इस शहर से, हुई नयी -नयी पहचान।
चूल्हा वही, चक्की वही, वही सुगढ़ तेरे हाथ ,
प्रिय ! रसोई में तेरे, हैं नये-नये पकवान।
मैं हूँ वही, तुम हो वही , सर पर हैं वही हाथ,
दम्पति हैं हम तो पहले से, अब दो के हैं माँ -बाप।
*यह कविता शादी की सातवीं वर्षगाँठ सन २००७ में लखनऊ में लिखी गयी ।
प्रिये ! उमड़ते ज़ेहन में, नये -नये जज़्बात।
तुम हो वहां, मैं हूँ यहाँ, फिर आ गयी अप्रैल बीस,
हो गयी ये तो बात पुरानी, हैं नये-नये अरमान।
पलक झपकते गुज़र गए, फेरे जितने साल,
प्रीति पुरानी हो गयी अपनी, हैं नये -नये मेहमान।
तुम हो वही मैं हूँ वही और घर भी तो वही है,
पर अपनी जिन्दगी में हैं, अब नये -नये सामान।
मैं हूँ वही, तुम हो वही और नाम भी वही हैं,
पर अपनी इस शहर से, हुई नयी -नयी पहचान।
चूल्हा वही, चक्की वही, वही सुगढ़ तेरे हाथ ,
प्रिय ! रसोई में तेरे, हैं नये-नये पकवान।
मैं हूँ वही, तुम हो वही , सर पर हैं वही हाथ,
दम्पति हैं हम तो पहले से, अब दो के हैं माँ -बाप।
*यह कविता शादी की सातवीं वर्षगाँठ सन २००७ में लखनऊ में लिखी गयी ।