Tuesday, October 1, 2013

सुन सखि ! कर्तव्य है बड़ा प्रेम से

सुन सखि ! कर्तव्य है बड़ा प्रेम से 

ज्यों पृथ्वी से आकाश बड़ा है, ज्यों धन से सम्मान बड़ा है,
निर्धन से धनवान बड़ा है, दुर्बल से बलवान बड़ा है। 
सुन सखि ! बुद्धि बड़ी है बल से। 

कायर को नहीं क्षमा शोभती, उजाले में नहीं ज्योति,
ज्ञानी को नहीं क्रोध शोभता, बिनु विवेक नहीं बुद्धि,
सुन सखि ! विनय बड़ा विवेक से। 

पुष्पों की सुगंध है प्यारी, नव वधु की लज्जा है न्यारी,
प्रियतम की मुस्कान के आगे, फीकी लगती दुनिया सारी,
सुन सखि ! प्रेम बड़ा प्रीतम से। 

जिसने कर्तव्य करने की ठानी,  कोई नहीं है उसका सानी,
कृति अमर कर देती उसको, दे जाता है अमिट निशानी ,
सुन सखि ! कर्तव्य बड़ा जीवन से। 

रीता है जो हृदय प्रेम से, वंचित है वो जीवन सुख से,
परिपक्व बनाता है कर्तव्य, परिचय करवा कर यथार्थ से,
सुन सखि ! हृदय प्रेम बिन सूना। 

प्रेम जगाता आलस तन में, सुध-बुध खोता प्राणी 
लाठी ले कर्तव्य खड़ा हो, करने न देता नादानी। 
लोक लाज तजि प्रेम दौड़ता, अपना प्रिय पाने को,
 सही मार्ग कर्तव्य दिखाता मर्यादा अपनाने को। 
सुन सखि ! कर्तव्य है बड़ा प्रेम से।

सुन सखि ! प्रेम के कैसे रंग….

निर्मल है ज्यों धारा जल की,  शीतल है ज्यों पवन बसंती,
मधुर है ज्यों कोयल क़ी कू-कू, विरहाकुल पपीहे की पी-पी,
तपन अग्नि का है ज्यों गुण, तीखापन ज्यों मिर्ची का,
गुड़ का गुण ज्यों मीठापन, खट्टापन ज्यों इमली का,
कोमल ज्यों पंखुड़ी कमल की, स्निग्ध है जो मक्खन सी,
रजनीगन्धा की सुगंध ज्यों, सुन्दर है जो प्रकृति जैसी। 
पावन है गंगाजल जैसे, प्रेम के अनुभव हैं कुछ ऐसे। 

सुन सखि ! अब महिमा दोनों की -
जहाँ मिला कर्तव्य प्रेम से, प्रेम उच्च हो जाता,
मोक्ष लक्ष्य जिस जीवन का है, लक्ष्य वो अपना पाता। 




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