Thursday, October 3, 2013

विवाह की सातवीं वर्षगाँठ *

मैं हूँ वही, तुम हो वही, तारीख भी वही है,  
प्रिये ! उमड़ते ज़ेहन में, नये -नये जज़्बात। 

तुम हो वहां, मैं हूँ यहाँ, फिर आ गयी अप्रैल बीस,
हो गयी ये तो बात पुरानी, हैं नये-नये अरमान। 

पलक झपकते गुज़र गए, फेरे जितने साल,
प्रीति पुरानी हो गयी अपनी, हैं नये -नये मेहमान। 

तुम हो वही मैं हूँ वही और घर भी तो वही है,
पर अपनी जिन्दगी में हैं, अब नये -नये सामान। 

मैं हूँ वही, तुम हो वही और नाम भी वही हैं,
पर अपनी इस शहर से, हुई नयी -नयी पहचान। 

चूल्हा वही, चक्की वही, वही सुगढ़ तेरे हाथ ,
प्रिय ! रसोई में तेरे, हैं नये-नये पकवान।

मैं हूँ वही, तुम हो वही , सर पर हैं वही हाथ,
दम्पति हैं हम तो पहले से, अब दो के हैं माँ -बाप।  

*यह कविता शादी की सातवीं वर्षगाँठ  सन २००७ में लखनऊ में लिखी  गयी । 

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