चले गये सभी, एक-एक करके चले गये
तन्हा मैं यादों में बिता रहा पल
कसक है अनजानी, अव्यक्त जो व्यक्त कर रही व्यथा
तुम्हे पढ़ने की कोशिश में बार-बार आड़े आ जाता है
मेरा अपनापन।
चलता, रुकता, सहमता, देखता हर एक दिशा
दिखेगी झलक हवाओं में , फिजाओं में शमाओं में
मुस्कुराऊंगा।
मिटती नहीं बढ़ती जाती है तुम्हें समझने की चाह
मस्तिष्क में बजती हैं सीटियाँ
उनमें लय पिरोता मैं, बनाता हूँ माला एक
कर देता हूँ समर्पित कल्पना को
जिसमें -
तुम्हीं हो, तुम्हीं हो, बस तुम्हीं हो।
तन्हा मैं यादों में बिता रहा पल
कसक है अनजानी, अव्यक्त जो व्यक्त कर रही व्यथा
तुम्हे पढ़ने की कोशिश में बार-बार आड़े आ जाता है
मेरा अपनापन।
चलता, रुकता, सहमता, देखता हर एक दिशा
दिखेगी झलक हवाओं में , फिजाओं में शमाओं में
मुस्कुराऊंगा।
मिटती नहीं बढ़ती जाती है तुम्हें समझने की चाह
मस्तिष्क में बजती हैं सीटियाँ
उनमें लय पिरोता मैं, बनाता हूँ माला एक
कर देता हूँ समर्पित कल्पना को
जिसमें -
तुम्हीं हो, तुम्हीं हो, बस तुम्हीं हो।
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