Friday, September 20, 2013

वो

वो चुप हैं,
सिमटे हैं अपने आप में; 
बचते हैं ,
कहीं खुल न जाएँ आपसे; 
तनते हैं ,
कुछ ढीले होने के लिए, 
डरते हैं दूसरों से, 
पर लड़ते हैं अपने आप से; 
मुझे मालूम है -
इस चुप्पी में खिलखिलाहट, 
बचने में छटपटाहट,
तनने में मुस्कुराहट ,
डरने में अव्यक्त आहट, 
और लड़ने में सकपकाहट, 
की अभिव्यक्ति है। 
छोड़ो भी ये आडम्बर, 
उठाओ सर ,
मिलाओ कर ,
निकालो डर, 
हम सभी अपने हैं, 
पाना चाहते हैं तुम्हे, 
बिल्कुल  तुम्हारी तरह।    

No comments:

Post a Comment