अपनी सोच.... अभिव्यक्ति अपनी
हिंदी में ब्लॉग अपनी सोच..अभिव्यक्ति अपनी शुरू करने के लिए 'हिंदी दिवस-१४सितंबर' से अच्छा दिन क्या कोई हो सकता है। नहीं न। तो फिर प्रस्तुत हैं मेरी रचनाएँ। इन रचनाओं के प्रेरणा-स्रोत, व्यक्तियों और घटनाओं का मैं ह्रदय से आभारी हूँ, और ये रचनाएँ उन प्रेरणा-स्रोतों को समर्पित करता हूँ। इन्हें पढ़कर यदि, किसी को भी ये लगता है कि अरे! ये तो मेरे मन की बात है, ये रचनाएँ सार्थक हो जायेंगी। सबकी अपनी अलग- अलग सोच होती है। मेरे अपने सोच की तारतम्यता की अभिव्यक्ति आपके सामने इन रचनाओं में प्रस्तुत है:
Monday, November 11, 2024
Sunday, November 10, 2024
मैंने ये सोचकर
मैंने ये सोचकर, रोके अपने कदम ,
कि चीज़ किसी की, चुराना नहीं चाहिए ।।
जिसने भी दिल चुराया, न वापस किया,
जीने के वास्ते, दिल लगाया किये ।।
इस क़दर मामले में हैं आगे बढ़े,
उनसे भी दिल लगा, जो किनारा किये ।।
वो धूप की नरमी और, वो हाॅस्टल की छत,
बैठ किस्से उन्हीं के, सुनाया किये।।
डूब आंखों में उनकी, जियें कि मरें,
अब तिनके का, सहारा किसे चाहिए।।
मैंने ये सोचकर, रोके अपने कदम ,
कि चीज़ किसी की, चुराना नहीं चाहिए ।।
-राकेश त्रिपाठी "प्रियांश"
श्री सुबोध कुमार सर से वार्तालाप के क्रम में दिनांक १०/११/२०२४ को लिखी गयी .
Tuesday, April 14, 2020
योग के लिए
kavyasansad.online वेबसाइट पर प्रकाशित होने के लिए आज दिनांक १५/०४/ २०२० को राकेश त्रिपाठी 'प्रियांश' के नाम से भेजा।
तुम्हारे स्पर्श ने -
मेरे रोम रोम को सिहरनों से प्लावित कर दिया है इतना कि,
कुछ भी महसूस नहीं होता, सिवाय तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के।
तुम्हारे स्नेह लेप ने -
मेरी त्वचा को इतना स्नेहिल बना दिया है कि,
कुछ भी नहीं टिकता -रुकता , सरकता हुआ मिल जाता है धूल में।
तुम्हारी मुस्कान ने -
हृदय के द्वार खोल दिए हैं इतनी आतुरता से कि,
मचल उठा है पूरा व्यक्तित्व तुममें समाने के लिए।
तुम्हारी भृकुटि -
पर्याप्त है उद्दंडों को दण्डित करने के प्रति जागृति के लिए कि,
कोई कोना नहीं मिलता सुरक्षित सिवाय तुम्हारी गोद के।
तुम्हारी विनम्रता ने -
बाँध दिए हैं बड़े- बड़ों के पाँव विचलित होने से कि,
डगर वही जिस पर साथ चलें श्रद्धा और समर्पण से।
तुम्हारा स्पर्श और स्नेहलेप;
तुम्हारी मुस्कान, भृकुटि और विनम्रता-
इतनी व्यापक कि, जगा दे मन को चित्त वृत्ति निरोध के लिए।
वस्तुतः योग के लिए।
Wednesday, January 2, 2019
जीवन गुज़र रहा है
तिनका तिनका बिखर रहा है,
दामन में धूप छाँव सम्हाले,
देखो जीवन गुज़र रहा है।
हाथ पकड़कर पास बिठा लें,
कदम बढा़ कर चाल मिला लें,
मिलन विछोह की लीला जीवन,
मुट्ठी से रेत सा फिसल रहा है|
सुख की अभिलाषा है जीवन,
दु:ख दूसरा है पहलू इसका,
सुख दुःख की चक्की में पिसना,
मानव का मन निरख रहा है।
बचपन बीता, आयी जवानी,
बचपने से निकल की नादानी,
अनुभव के कुछ बरस समेटे,
जीवन जवान सा निखर रहा है।
धुंधली दृष्टि, केश मिश्रित से,
आशंका विश्वास से भरे,
जिम्मेदारी ले कंधों पर
प्रौढ सा जीवन गुज़र रहा है।
दामन में धूप छाँव सम्हाले
देखो जीवन गुज़र रहा है।
Monday, December 31, 2018
हम हर नव वर्ष मनायेंगे
बहस हो रही जोरों से कि,
ये अपना नव वर्ष नहीं,
संदेशे आते जाते हैं,
हम इसको नहीं मनायेंगे,
मेरा अपना कुछ मत है भिन्न
हम आज इसे बतलायेंगे।
हम हर पल घंटे दिवस मनायें तो,
जो भी अच्छा हो अपनायें तो,
हो कदमताल अधुना के संग,
यदि ऐसा नव वर्ष मनायें तो।
वसुधैव कुटुम्बकम का नारा,
जिस भारत वर्ष का गान रहा,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि,
जब सृष्टि का आरंभ हुआ,
नव वर्ष मनाती प्रकृति धरा,
हम भी इसके अनुयायी हैं,
नवरात्रों में कर अनुष्ठान,
जप तप व्रत कर इसे मनाते हैं।
पंचांग है परिष्कृत अपना,
गणना कर शुभ मुहूर्तों की,
सारे संस्कार मनाते हैं,
सूर्य चन्द्र ग्रहण की तिथियां,
उपग्रह भेज अंतरिक्ष में,
नासा वाले जो बताते हैं,
गणना कर पंचांग से पंडित जी
घर बैठे सटीक बताते हैं।
अपनी मान्यताओं के अनुसार,
दुनिया के कोने कोने में,
सब उत्सव त्योहार मनाते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेण्डर किशोरों सा,
अब विश्व पटल पर छाया है,
दुनिया के ग्लोबल होने से,
सबने इसको अपनाया है,
जनवरी प्रथम माह इसका,
नव वर्ष इसे भी मनायें तो
ये अपना नव वर्ष नहीं,
संदेशे आते जाते हैं,
हम इसको नहीं मनायेंगे,
मेरा अपना कुछ मत है भिन्न
हम आज इसे बतलायेंगे।
हम हर पल घंटे दिवस मनायें तो,
जो भी अच्छा हो अपनायें तो,
हो कदमताल अधुना के संग,
यदि ऐसा नव वर्ष मनायें तो।
वसुधैव कुटुम्बकम का नारा,
जिस भारत वर्ष का गान रहा,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि,
जब सृष्टि का आरंभ हुआ,
नव वर्ष मनाती प्रकृति धरा,
हम भी इसके अनुयायी हैं,
नवरात्रों में कर अनुष्ठान,
जप तप व्रत कर इसे मनाते हैं।
पंचांग है परिष्कृत अपना,
गणना कर शुभ मुहूर्तों की,
सारे संस्कार मनाते हैं,
सूर्य चन्द्र ग्रहण की तिथियां,
उपग्रह भेज अंतरिक्ष में,
नासा वाले जो बताते हैं,
गणना कर पंचांग से पंडित जी
घर बैठे सटीक बताते हैं।
अपनी मान्यताओं के अनुसार,
दुनिया के कोने कोने में,
सब उत्सव त्योहार मनाते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेण्डर किशोरों सा,
अब विश्व पटल पर छाया है,
दुनिया के ग्लोबल होने से,
सबने इसको अपनाया है,
जनवरी प्रथम माह इसका,
नव वर्ष इसे भी मनायें तो
जो अच्छा हो अपनायें तो ।
पर संस्कृति अक्षुण्य रहे अपनी,
उसको न भूलने देंगे हम,
प्रेषित कर संतति को अपनी,
अपना कर्तव्य निभायेंगे,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ,
हम नववर्ष मनायेंगे ।
आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
आप स्वस्थ हों, समृद्ध हों, सानंद हों,
दिग्दिगन्त में आप का यश फैले।
🙏🏻 राकेश कुमार त्रिपाठी🙏🏻
पर संस्कृति अक्षुण्य रहे अपनी,
उसको न भूलने देंगे हम,
प्रेषित कर संतति को अपनी,
अपना कर्तव्य निभायेंगे,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ,
हम नववर्ष मनायेंगे ।
आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
आप स्वस्थ हों, समृद्ध हों, सानंद हों,
दिग्दिगन्त में आप का यश फैले।
🙏🏻 राकेश कुमार त्रिपाठी🙏🏻
Saturday, September 22, 2018
मुस्कराना
मुस्कराने की तलब टाला नहीं करते,
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।
ये वो ताकत है जो मुश्किलों पर सदा भारी।
सुलह के आसरे यदि मुस्कराना छोड़ देंगे हम,
उलझनें सर उठायेंगी, बढ़ जायेगी लाचारी।
सीना तानकर जब उलझनों से आँखें मिलाएंगे,
वो घर के किसी कोने में जाकर दुबक जाएंगे।
हम मुस्कराकर उलझनों को मुँह चिढ़ायेंगे,
सुलह की बात न करके उन्हें जड़ से मिटायेंगे।
Tuesday, June 26, 2018
मदमस्त
हूँ मदमस्त हवा का झोंका ,
सीमा में मुझको मत बाँधो,
आ पहुँचा हूं पास तुम्हारे,
चाहो जितना आनंद उठा लो।
जीवन मरण चक्र विधि हाथ,
साया भी नहीं रहता साथ,
माया मोह के टंटे से निकलो,
जीवन का आनंद उठा लो ।
आज अभी इस क्षण जीवन है,
जीवन से आह्लादित मन है,
मन में प्रेम की निर्मल धारा,
आओ आकर डुबकी लगा लो।
प्रेम बिना जीवन में क्या रस,
नीरस जीवन मृत्यु समान,
मृत्यु से पहले मृत्यु का वरण,
करें नहीं, सौगंध उठा लो.
पहुंचा हूँ मैं पास तुम्हारे,
चाहो जितना आनंद उठा लो ।
सीमा में मुझको मत बाँधो,
आ पहुँचा हूं पास तुम्हारे,
चाहो जितना आनंद उठा लो।
जीवन मरण चक्र विधि हाथ,
साया भी नहीं रहता साथ,
माया मोह के टंटे से निकलो,
जीवन का आनंद उठा लो ।
आज अभी इस क्षण जीवन है,
जीवन से आह्लादित मन है,
मन में प्रेम की निर्मल धारा,
आओ आकर डुबकी लगा लो।
प्रेम बिना जीवन में क्या रस,
नीरस जीवन मृत्यु समान,
मृत्यु से पहले मृत्यु का वरण,
करें नहीं, सौगंध उठा लो.
पहुंचा हूँ मैं पास तुम्हारे,
चाहो जितना आनंद उठा लो ।
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अनुभूतियाँ, २०२०
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मैंने ये सोचकर, रोके अपने कदम , कि चीज़ किसी की, चुराना नहीं चाहिए ।। जिसने भी दिल चुराया, न वापस किया, जीने के वास्ते, दिल लगाया किये ।। इस...
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