Tuesday, April 14, 2020

योग के लिए

kavyasansad.online वेबसाइट पर प्रकाशित होने के लिए आज दिनांक १५/०४/ २०२० को राकेश त्रिपाठी 'प्रियांश' के नाम से भेजा। 


तुम्हारे स्पर्श ने -
मेरे रोम रोम को सिहरनों से प्लावित कर दिया है इतना कि,
कुछ भी महसूस नहीं होता, सिवाय तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श के। 

तुम्हारे स्नेह लेप ने -
मेरी त्वचा को इतना स्नेहिल बना दिया है कि,
कुछ भी नहीं टिकता -रुकता , सरकता हुआ मिल जाता है  धूल में। 

तुम्हारी मुस्कान ने -
हृदय के द्वार खोल दिए हैं इतनी आतुरता से कि,
मचल उठा है पूरा व्यक्तित्व  तुममें समाने के लिए। 

तुम्हारी भृकुटि -
पर्याप्त है उद्दंडों को दण्डित करने के प्रति जागृति के लिए कि,
कोई कोना नहीं मिलता सुरक्षित सिवाय तुम्हारी गोद के। 

तुम्हारी विनम्रता ने -
बाँध दिए हैं बड़े- बड़ों के पाँव विचलित होने से कि,
डगर वही जिस पर साथ चलें श्रद्धा और समर्पण से। 

तुम्हारा स्पर्श और स्नेहलेप;
तुम्हारी मुस्कान, भृकुटि और विनम्रता-
इतनी व्यापक कि, जगा दे मन को चित्त वृत्ति निरोध के लिए। 
वस्तुतः योग के लिए।   



  

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